महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र देवी दुर्गा की आराधना का एक अद्वितीय स्तोत्र है, जिसे सुनने और गाने से मन में अपार शक्ति और भक्ति का संचार होता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से महिषासुर जैसे दुष्टों के संहार और देवी के अद्वितीय साहस की महिमा का गुणगान करता है। आइए जानते हैं इस स्तोत्र के महत्व और इसके हिंदी में लिरिक्स।
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का महत्व
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र में देवी दुर्गा की शक्ति, उनके पराक्रम और उनके अद्वितीय साहस का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र खासकर नवरात्रि के दौरान पाठ किया जाता है और इसे गाने या सुनने से मन की शांति, शक्ति का संचार, और संकटों का निवारण होता है। इस स्तोत्र का पाठ देवी दुर्गा की उपासना करने वाले भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह उनकी रक्षा, संकटों का नाश, और शत्रुओं पर विजय दिलाने में सहायक होता है।
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र हिंदी में (Lyrics)
यहाँ पर महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र के हिंदी में लिरिक्स प्रस्तुत हैं, जिनका पाठ करने से देवी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं:
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र
अयि गिरिनन्दिनि, नन्दितमेदिनि, विश्वविनोदिनी, नन्दिनुते।
गिरिवरविन्ध्य-शिरोऽधिनिवासिनि, विष्णुविलासिनि, जिष्णुनुते॥
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि, भूरिकुटुम्बिनि, भूरिकृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
सुरवरवर्षिणि, दुर्धरधर्षिणि, दुर्मुखमर्दिनि, हर्षरते।
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि, किल्बिषमोचिनि, घोषरते॥
दनुजनिरोषिणि, दितिसुतरोषिणि, दुर्मदमर्दिनि, रक्षिते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते।
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृङ्गनिजालय मध्यमते॥
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि, कैटभभञ्जिनि, रासरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
अयि शतमखादि शिरोऽधिनिकन्दन, शत्रुविनाशिनि, सद्ध्यशुते।
जलकलमलविनोदिनि, सस्मित शोभित करत्रिकुटे॥
सुरधुनि तरङ्ग, भुजङ्ग विलासिनि, दामिनि तामिनि, घोररते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
अयि शरणागत वत्सल तारिणि, दुर्मतिकलिकलुषामनिधे।
सर्वसि तक्षण तक्षक समुद्र-सुधाकरमण्धरधारिणिधे॥
दनुजनिरोधिनि, दुर्गति मोचिनि, महिषासुरमर्दिनि, रक्षिते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
अयि करिबन्धिनु, शोकविनाशिनि, रत्यसुखदायिनि, सत्तरते।
दृढतरहसुराधिप, पारिषदार्धित, घोरमहाहव मल्लरते॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैक नुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित, दुर्धर निर्जरशक्ति भृते।
जपनिधि विपुल धनुर्धर वीर वृथाशरणागतशक्ति कृते॥
जयत जपविजय रक्षिणि रक्षणि, विदधिनि दत्तधिया नुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
स्फुरदखरनवशरनशोषणशत्रु, खट्वाङ्गपीठकनिःक्रुषते।
धृतधृतिधृतभुतलधीतलितोदधिसिंधु सुधाकरते॥
खलद्रुतदुर्मुखतुल्यमतङ्गनयङ्गविघट्टितनीडरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
अयि खगवदनदासखदुष्टदरेणुखलाध्वगराजवृते।
वृकसमधुजरवाक्यविगण्डविवर्तितवासवदत्तरते॥
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि, रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र के लाभ
- शक्ति का संचार: इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों के अंदर आत्मविश्वास और शक्ति का संचार होता है।
- संकटों से मुक्ति: देवी दुर्गा की आराधना से जीवन के संकटों और बाधाओं का निवारण होता है।
- मन की शांति: महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र सुनने से मानसिक तनाव दूर होता है और मन को शांति मिलती है।
- भक्ति और समर्पण: यह स्तोत्र भक्तों को देवी दुर्गा के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण का अनुभव कराता है।
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का उत्सव है। यह स्तोत्र हमें विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की प्रेरणा और दुर्गा माँ की कृपा से जीवन में विजयी होने का मार्ग दिखाता है।
अगर आप भी देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस स्तोत्र का पाठ या श्रवण अवश्य करें और अपने जीवन में सुख, शांति और शक्ति का संचार करें।