“सिर मस्तक रखिया परब्रह्म (sir mastak rakhya parbrahm)” एक प्रसिद्ध भजन है, जो गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। यह भजन सिख धर्म के महान गुरु, गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित है और इसे गुरु ग्रंथ साहिब के अंग 201 में पाया जाता है। इस भजन का विशेष महत्व है क्योंकि यह परमेश्वर की महिमा और उनकी शरण में आने वाले भक्तों की सुरक्षा पर जोर देता है।
भजन के बोल और अर्थ
“सिर मस्तक रखिया परब्रह्म” भजन के बोल बहुत ही गहरे और आध्यात्मिक अर्थ लिए हुए हैं। यह भजन हमें यह सिखाता है कि अगर हम परम ब्रह्म यानी ईश्वर की शरण में आते हैं, तो वे हमें हर विपत्ति से बचाते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं। भजन के कुछ अंश निम्नलिखित हैं:
सिर मस्तक रखिया परब्रह्म” के संपूर्ण बोल इस प्रकार हैं, जो गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंग 201 में दर्ज हैं। यह भजन गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित है:
सिर मस्तक रखिया परब्रह्म ।
करे अनद दीन दयाल हरि रहिया ।।१।।
रहाउ।।जो मृगत लोभी चलै बिहाल ।
सो प्रभु राखनहार गोपाल ।।१।।
जो राखै प्रभि आपनै रंगि ।
तिसु जन के सूखे सदा अंग ।।२।।
सगल स्रिसटि उधारन कउ अंग ।
हरि सिमरत दुखु छीनिआ सर्ब सुख मंगल ।।३।।
सतिगुरु के उपदेश सुणि परमानंद ।
नानक दास दरस परे अनंद ।।४।।१०।।
भजन का अर्थ:
- रहाउ (मुख्य संदेश):
परब्रह्म (ईश्वर) ने हमारे सिर पर हाथ रखा है, जिससे हमें उनकी कृपा से सुरक्षा मिलती है। परमात्मा दीन-दुखियों के दयालु हैं, और उनकी शरण में आने से हमें आनंद की प्राप्ति होती है। - पहला पद:
जैसे एक लोभी हिरण भटकता है, वैसे ही हम भी संसार में भटकते रहते हैं। लेकिन प्रभु ही हमें इस भटकाव से बचा सकते हैं और सही मार्ग दिखा सकते हैं। - दूसरा पद:
जिसे ईश्वर अपने प्रेम में रंग देते हैं, उसका जीवन हमेशा सुखी रहता है। उनके कृपादृष्टि में जीवन की सभी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं। - तीसरा पद:
पूरे संसार का उद्धार प्रभु की कृपा से संभव है। प्रभु का स्मरण करते ही दुख मिट जाते हैं और जीवन में सुख और मंगल का वास होता है। - चौथा पद:
सतगुरु का उपदेश सुनने से परम आनंद की प्राप्ति होती है। गुरु नानक देव जी के दास (भक्त) के दर्शन से हमें परमानंद और शांति मिलती है।
अर्थ:
- “सिर मस्तक रखिया परब्रह्म”: परब्रह्म (ईश्वर) ने हमारे सिर पर हाथ रखा है, जिससे हमें पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होती है।
- “करे अनद दीन दयाल हरि रहिया”: दीन-दुखियों के दयालु भगवान हर समय हमारी रक्षा करते हैं और हमें आनंद प्रदान करते हैं।
- “जो मृगत लोभी चलै बिहाल”: यह संसार उस लोभी हिरण की तरह है जो मायाजाल में फंसकर भटकता रहता है।
- “सो प्रभु राखनहार”: ऐसे संकट में केवल प्रभु ही हमारी रक्षा कर सकते हैं।
भजन का आध्यात्मिक संदेश
इस भजन में गुरु अर्जुन देव जी ने यह संदेश दिया है कि जो व्यक्ति ईश्वर की शरण में आता है, वह संसार के सभी दुखों और कष्टों से मुक्त हो जाता है। ईश्वर का साथ हमारे जीवन को सफल बनाता है और हमें अध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
सिख धर्म में भजन का महत्व
“सिर मस्तक रखिया परब्रह्म” का सिख धर्म में विशेष महत्व है। यह भजन उन भक्तों के लिए एक प्रेरणा है, जो अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ हैं, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
भजन का यह संदेश है कि यदि हम परमात्मा की भक्ति में लीन रहते हैं, तो हमारा जीवन सफल और कष्टमुक्त हो सकता है।
“सिर मस्तक रखिया परब्रह्म” न केवल एक भक्ति गीत है, बल्कि यह जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी सिखाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि ईश्वर की शरण में रहकर हम अपने जीवन के सभी संकटों को पार कर सकते हैं। यह भजन हर सिख भक्त के दिल में एक विशेष स्थान रखता है और जीवन की हर मुश्किल घड़ी में आशा का संचार करता है।