कुल्लू दशहरा 2024: जब प्रदेश और विदेश की सांस्कृतिक विरासत एक मंच पर आएगी

कुल्लू दशहरा हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख और अत्यधिक प्रसिद्ध त्योहार है, जिसे न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष, कुल्लू दशहरा अपने सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के कारण हजारों पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस बार, कुल्लू दशहरा में कुछ विशेष और नए आकर्षण होंगे, जिनमें प्रदेश और विदेश की विविध सांस्कृतिक झलकियाँ प्रमुख रूप से शामिल होंगी। इस लेख में, हम आपको इस पर्व की विस्तृत जानकारी देंगे और बताएंगे कि क्यों कुल्लू दशहरा को देखने के लिए देश-विदेश से लोग उमड़ते हैं।

कुल्लू दशहरा का ऐतिहासिक महत्व

Kullu dussera 2024
image: via google

 

कुल्लू दशहरा की शुरुआत 17वीं शताब्दी से मानी जाती है, जब कुल्लू के राजा जगत सिंह ने भगवान रघुनाथ की पूजा प्रारंभ की। कहा जाता है कि राजा ने एक गंभीर गलती की थी, जिसके पश्चात उन्होंने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए भगवान रघुनाथ (भगवान राम) को कुल्लू का देवता घोषित किया। यह पर्व तभी से मनाया जा रहा है और इसने राज्य के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुल्लू दशहरा के दौरान भगवान रघुनाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में भक्त और पर्यटक यहाँ आते हैं।

कुल्लू दशहरा की खासियत

कुल्लू दशहरा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे अन्य राज्यों की तरह सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान, कुल्लू की घाटियाँ रंग-बिरंगी सजावट और उल्लास से भर जाती हैं। यह उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें विविध सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी होती हैं, जो इसे एक अनूठा अनुभव बनाती हैं।

  1. रथ यात्रा का महत्त्व
    कुल्लू दशहरा का मुख्य आकर्षण रघुनाथ जी की रथ यात्रा है। इस यात्रा में कई देवी-देवताओं की मूर्तियों को सजाया जाता है और वे पूरे कुल्लू में यात्रा करते हैं। यह एक ऐसा दृश्य होता है जो किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकता है।
  2. स्थानीय और विदेशी कलाकारों की प्रस्तुति
    इस बार के कुल्लू दशहरे में हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ विदेशी सांस्कृतिक दलों की प्रस्तुतियाँ भी देखने को मिलेंगी। इनमें नृत्य, संगीत, लोक कला और हस्तशिल्प की अद्वितीय झलकियाँ होंगी, जो दर्शकों को सांस्कृतिक विविधता का अनुभव कराएंगी। विदेशी कलाकारों के जुड़ने से यह पर्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक नई पहचान बना रहा है।
  3. स्थानीय कला और शिल्प का प्रदर्शन
    कुल्लू दशहरे के दौरान, राज्य के स्थानीय हस्तशिल्पकार और कारीगर अपनी कृतियों का प्रदर्शन करते हैं। ऊनी वस्त्र, शॉल, टोपी, और अन्य हस्तनिर्मित सामानों की दुकानों से बाजार गुलजार रहता है। इन वस्त्रों पर स्थानीय कला की बारीकियाँ दर्शाती हैं कि हिमाचल प्रदेश का शिल्प कितना समृद्ध है।

कुल्लू दशहरा और पर्यटन

कुल्लू दशहरा के दौरान, कुल्लू और मनाली क्षेत्र में पर्यटन उद्योग को भारी बढ़ावा मिलता है। हर साल, हजारों पर्यटक इस उत्सव को देखने के लिए यहाँ आते हैं, जिससे स्थानीय व्यवसाय और होटल उद्योग को बहुत फायदा होता है। इस पर्व के दौरान, हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता को देखने का अवसर मिलता है, जो इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाता है।

पर्यटन स्थलों की सूची:

  1. मनाली:
    कुल्लू दशहरा के साथ मनाली की सैर करना पर्यटकों के लिए एक बोनस की तरह है। मनाली की हरी-भरी घाटियाँ और बर्फ से ढके पहाड़ सर्दियों में एक अलग ही आकर्षण प्रदान करते हैं।
  2. रोहतांग पास:
    अगर आप कुल्लू दशहरे के दौरान यहाँ आते हैं, तो रोहतांग पास की यात्रा भी जरूर करें। यह स्थल अपने सुंदर दृश्यों और बर्फीले खेलों के लिए प्रसिद्ध है।
  3. ब्यास नदी पर राफ्टिंग:
    रोमांच पसंद करने वालों के लिए कुल्लू दशहरे के समय ब्यास नदी में राफ्टिंग का आनंद भी लिया जा सकता है। यह अनुभव आपकी यात्रा को और भी रोमांचक बना देगा।

कुल्लू दशहरा का धार्मिक पक्ष

कुल्लू दशहरा न केवल सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका धार्मिक पक्ष भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस पर्व के दौरान, स्थानीय मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और लोग भगवान रघुनाथ की आराधना करते हैं। इस पूजा का धार्मिक महत्त्व इतना गहरा है कि लोग इसे अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक मानते हैं।

  1. देवी-देवताओं की उपस्थिति
    कुल्लू दशहरे में क्षेत्र के सभी प्रमुख देवी-देवता एकत्रित होते हैं। यह मान्यता है कि इस पर्व के दौरान सभी देवता एक साथ मिलकर भगवान रघुनाथ की आराधना करते हैं। इस धार्मिक संगम का महत्त्व इतना ज्यादा है कि इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
  2. पशु बलि का अनुष्ठान
    ऐतिहासिक रूप से, कुल्लू दशहरे में पशु बलि की परंपरा भी रही है, हालाँकि आधुनिक समय में इसे प्रतीकात्मक रूप में ही किया जाता है। यह बलि प्रथा देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और राज्य की सुख-समृद्धि के लिए की जाती थी।

विदेशी पर्यटकों का आकर्षण

कुल्लू दशहरा अब केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हो चुका है। हर साल, विदेशी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जो हिमाचल प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करने के लिए यहाँ आते हैं। विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक विशेष अवसर होता है कि वे भारतीय संस्कृति को करीब से जान सकें और उसमें भाग ले सकें।

2024 का कुल्लू दशहरा: विशेष आकर्षण

इस वर्ष के कुल्लू दशहरे में न केवल प्रदेश की, बल्कि विदेशों की भी सांस्कृतिक झलकियाँ देखने को मिलेंगी। स्थानीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विदेशों से आए कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियाँ देंगे। इस बार का उत्सव पहले से भी अधिक भव्य और विविधताओं से भरा होगा, जिससे यह अनुभव और भी खास बन जाएगा।

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