छठ पूजा भारत का एक अत्यंत प्राचीन और पवित्र पर्व है, जो विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य भगवान और छठी मैया की आराधना के लिए समर्पित होता है। छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि यह पर्व अन्य त्योहारों से अलग अपनी सादगी, कठोर व्रत और भक्ति के लिए जाना जाता है। छठ पूजा की शुरुआत की बात करें तो इसके पीछे कई धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियां हैं, जो इस पर्व के महत्व और इसके प्रारंभ को दर्शाती हैं।
छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई
इस लेख में हम छठ पूजा की उत्पत्ति, उसके धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों के साथ-साथ इस पर्व से जुड़ी विभिन्न परंपराओं और उसकी महत्ता के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
छठ पूजा की पौराणिक कथाएँ
छठ पूजा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इन कथाओं के माध्यम से हमें पता चलता है कि यह पर्व कितना पुराना और महत्वपूर्ण है।
- महाभारत काल से जुड़ी कथा:
महाभारत की कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राज्य जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। द्रौपदी ने सूर्य देव की आराधना की और उनसे प्रार्थना की कि वे उनके जीवन में सुख और समृद्धि वापस लाएं। सूर्य देव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया, जिसके फलस्वरूप पांडवों को उनका राज्य पुनः प्राप्त हुआ। इस कथा से यह सिद्ध होता है कि छठ पूजा की परंपरा महाभारत काल से ही चली आ रही है और इसे संकटों से मुक्ति का एक माध्यम माना जाता है। - रामायण काल की कथा:
एक अन्य कथा भगवान राम और माता सीता से जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान राम और सीता माता लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने कार्तिक मास में छठ पूजा का व्रत किया। इस व्रत के दौरान राम और सीता ने सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की थी। इस पूजा के बाद ही रामराज्य की स्थापना हुई और प्रजा को सुख और समृद्धि प्राप्त हुई। यह कथा इस बात को इंगित करती है कि छठ पूजा की परंपरा त्रेता युग से भी जुड़ी हुई है। - सूर्य देव और छठी मैया की कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को प्रकृति की देवी और संतान की रक्षक माना जाता है। वे ब्रह्मा की मानस पुत्री और माता शक्ति का स्वरूप हैं। कहा जाता है कि सूर्य देव की बहन के रूप में भी छठी मैया की पूजा की जाती है। वे विशेष रूप से उन महिलाओं की रक्षा करती हैं, जो संतान सुख की प्राप्ति की कामना करती हैं। छठी मैया की पूजा से महिलाओं को संतान प्राप्ति और उसकी रक्षा का आशीर्वाद मिलता है। यह विश्वास है कि जो महिलाएं छठ व्रत करती हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
छठ पूजा का ऐतिहासिक दृष्टिकोण
छठ पूजा का इतिहास भी अत्यंत प्राचीन है। इस पर्व के ऐतिहासिक प्रमाण हमें वैदिक काल से ही मिलते हैं, जब ऋषि-मुनि सूर्य देव की उपासना करते थे। सूर्य उपासना के माध्यम से लोग शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त करते थे और जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता था।
- वैदिक काल में सूर्य उपासना:
वैदिक काल में सूर्य देव को जीवन और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत माना जाता था। ऋग्वेद में सूर्य देव की आराधना के कई मंत्र मिलते हैं, जिनके माध्यम से उनकी पूजा की जाती थी। उस समय छठ पूजा जैसी सूर्य उपासना की परंपरा भी प्रचलित थी, जिसमें लोग नदी या जलाशय के किनारे सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य को स्वास्थ्य, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता था, और इसलिए उनकी उपासना का महत्व अत्यधिक था। - प्राचीन कृषि समाज में छठ पूजा:
छठ पूजा का ऐतिहासिक संदर्भ कृषि समाज से भी जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में, जब लोग खेती पर निर्भर थे, सूर्य की उपासना का महत्व और भी बढ़ जाता था। सूर्य को फसलों की वृद्धि और अच्छे उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था। इसलिए किसान छठ के समय सूर्य देव की उपासना करके उनके आशीर्वाद से अच्छी फसल और समृद्धि की कामना करते थे। इस प्रकार, छठ पूजा कृषि संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा रही है।
छठ पूजा की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता
छठ पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। यह पर्व न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का भी माध्यम है। छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है, जो जीवन, ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि के प्रतीक हैं। छठ पूजा के चार दिनों के अनुष्ठान के दौरान व्रती उपवास रखते हैं, शुद्धता का पालन करते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
- सूर्य देव की महत्ता:
सूर्य को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। वे साक्षात देवता माने जाते हैं, जिन्हें हम प्रतिदिन देख सकते हैं और उनकी ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं। सूर्य की उपासना से न केवल शरीर को ऊर्जा मिलती है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी प्राप्त होती है। छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है, जिसमें जल के माध्यम से सूर्य की किरणों का स्वागत किया जाता है। यह क्रिया शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करती है। - छठी मैया की आराधना:
छठी मैया को विशेष रूप से बच्चों की रक्षा और उनकी लंबी आयु के लिए पूजा जाता है। वे मातृत्व की देवी मानी जाती हैं और संतान सुख के लिए उनकी आराधना की जाती है। मान्यता है कि जो महिलाएं पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ छठ व्रत करती हैं, उनकी संतान स्वस्थ और दीर्घायु होती है। छठी मैया की कृपा से परिवार में समृद्धि और शांति बनी रहती है।
छठ पूजा का अनुष्ठान और विधि-विधान
छठ पूजा का अनुष्ठान अत्यंत कठोर और अनुशासित होता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है और इसमें व्रती (व्रत करने वाले) को कई कठिन नियमों का पालन करना होता है। इस पर्व के दौरान व्रती को शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना होता है। छठ पूजा के अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
- पहला दिन: नहाय-खाय
छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती स्नान करके शुद्ध होते हैं और फिर शुद्ध एवं सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। आमतौर पर इस दिन चने की दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का भोजन किया जाता है। इस दिन से व्रती अपने घर और मन को पूरी तरह से शुद्ध रखने का संकल्प लेते हैं। - दूसरा दिन: खरना
दूसरे दिन खरना का आयोजन होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के दिन व्रती को नमक और तेल रहित भोजन करना होता है। इस दिन का प्रसाद अत्यंत शुद्ध और सात्विक माना जाता है, जिसे परिवार और समाज के लोग आपस में बांटते हैं। - तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। व्रती नदी या जलाशय के किनारे खड़े होकर सूर्य देव की उपासना करते हैं और जल में अर्घ्य अर्पित करते हैं। संध्या अर्घ्य का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि यह सूर्यास्त के समय किया जाता है, जब सूर्य की ऊर्जा और उसकी कृपा सबसे प्रभावी मानी जाती है। - चौथा दिन: उषा अर्घ्य
छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन उषा अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।