dussehra 2024: विजय का पर्व
भारत एक त्योहारों का देश है, और हर त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व होता है। इन्हीं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है दशहरा। दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है, और यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, जिससे इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
dussehra 2024 की तारीख, तिथि और समय
दशहरा हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि आमतौर पर अक्टूबर के महीने में आती है। इस साल, 2024 में दशहरा 15 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसके साथ ही, इस दिन का शुभ मुहूर्त और समय भी महत्वपूर्ण होता है।
2024 के लिए दशहरा तिथि और शुभ मुहूर्त
- तिथि: आश्विन शुक्ल दशमी
- दशमी तिथि का आरंभ: 14 अक्टूबर 2024, रात 8:10 बजे
- दशमी तिथि का समापन: 15 अक्टूबर 2024, शाम 6:15 बजे
- विजय मुहूर्त: 15 अक्टूबर 2024, दोपहर 2:15 बजे से 3:00 बजे तक
- अपराह्न पूजा का समय: 1:45 बजे से 4:15 बजे तक
इस समय के दौरान पूजा और अनुष्ठान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। विजय मुहूर्त को विशेष रूप से शुभ और पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का समय होता है।
दशहरा का महत्व
दशहरा का त्योहार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन रामायण के उस प्रसंग को स्मरण किया जाता है, जिसमें भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि सत्य की जीत और असत्य का पतन अवश्य होता है। रावण, जो एक महान विद्वान और शक्तिशाली राजा था, अपने अहंकार और बुरे कर्मों के कारण अंत में हार गया। इस दिन को भगवान राम और रावण के बीच हुई लड़ाई के समापन के रूप में भी मनाया जाता है।
दशहरा पूजा विधि
दशहरा के दिन लोग भगवान राम, माता दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। दशमी तिथि को घरों और मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन विशेष रूप से शमी वृक्ष की पूजा का भी महत्व है। माना जाता है कि शमी वृक्ष की पूजा से व्यक्ति के सभी संकट दूर होते हैं और विजय की प्राप्ति होती है। लोग अपने घरों के द्वारों पर आम के पत्तों और फूलों से तोरण बनाते हैं, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ घर में प्रवेश न कर सकें।
दशहरा के रीति-रिवाज
देश के विभिन्न हिस्सों में दशहरा विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस दिन रामलीला का मंचन होता है, जो भगवान राम के जीवन की घटनाओं पर आधारित नाट्य प्रस्तुति होती है। रामलीला के समापन पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है। यह रिवाज बुराई के अंत और सत्य की जीत को दर्शाता है।
दक्षिण भारत में, दशहरा का त्यौहार मैसूर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वहां, राजा की शोभायात्रा निकाली जाती है, जो पारंपरिक वेशभूषा और हाथियों के साथ सजाई जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
दशहरा से जुड़े लोकाचार
दशहरा सिर्फ धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक मूल्यों की पुनः स्थापना का भी समय है। इस दिन लोग अपने दुश्मनों के साथ शांति और सद्भाव से जीने का प्रण लेते हैं। कई जगहों पर इस दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा भी की जाती है, खासकर क्षत्रिय परिवारों में, क्योंकि यह पर्व विजय का प्रतीक माना जाता है।
दशहरा और रामायण
दशहरा का त्योहार रामायण के साथ जुड़ा हुआ है, जो एक महाकाव्य है और इसमें भगवान राम के जीवन और उनके संघर्षों का वर्णन किया गया है। रावण, जिसने सीता का हरण किया था, अंत में भगवान राम के हाथों मारा गया। यह लड़ाई केवल दो लोगों के बीच की नहीं थी, बल्कि यह धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य की लड़ाई थी। राम ने अंततः अधर्म का नाश किया और धर्म की पुनः स्थापना की।
दशहरा की कथा
दशहरा के त्योहार से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे प्रमुख कथा है भगवान राम की। कहा जाता है कि जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तब से इस दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा, देवी दुर्गा ने भी महिषासुर नामक राक्षस का वध दशमी तिथि को किया था, इस कारण से भी इस दिन को विजयादशमी के रूप में जाना जाता है। महिषासुर, जो अपनी शक्तियों के कारण अजेय हो चुका था, देवी दुर्गा ने उसे मारकर पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त किया।
दशहरा के सांस्कृतिक पहलू
दशहरा का त्योहार पूरे भारत में विविधताओं से भरा हुआ है। कई जगहों पर इस दिन रावण दहन होता है, जिसमें विशाल पुतले जलाए जाते हैं। लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर इस दिन को उल्लास के साथ मनाते हैं। बच्चों के लिए यह दिन खास होता है, क्योंकि उन्हें रावण दहन की कहानियां सुनने और देखने का मौका मिलता है। इस दिन मेलों का आयोजन भी किया जाता है, जहां लोग विभिन्न प्रकार के खेल और खान-पान का आनंद लेते हैं।
दशहरा की आधुनिकता में प्रासंगिकता
वर्तमान समय में भी दशहरा का महत्व वही है, जो पहले था। यह त्यौहार हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी बाधाएं क्यों न आएं, अगर हम सत्य के मार्ग पर हैं, तो विजय अवश्य हमारी होगी। आधुनिक समाज में यह पर्व हमें नैतिकता, सत्यता और संयम के मूल्यों को याद दिलाता है।
निष्कर्ष
दशहरा, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह पर्व हमें जीवन में सत्य, धर्म और नैतिकता की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि अहंकार, अधर्म और अत्याचार का अंत निश्चित है, और जो व्यक्ति सत्य और धर्म का पालन करता है, उसकी विजय अवश्य होती है|