नमस्कार दोस्तो आज हम आपको भगवान शिव जी की कथा बताएंगे |
भगवान शिव जी का जन्म कैसे हुआ –
पौराणिक कथा के अनुसार कैलाशपति भगवान शिव जी का जन्म हुआ ही नही ओ कैलाश पर्वत पर सृष्टि के कल्याण हेतु प्रकट हुये थे |
और सृष्टि निर्माण के लिये भगवान शिव जी का योगदान रहा है | शिव जी को देवो के देव महादेव भी केहते है | और जो शिव जी की सच्चे मन से आराधना करता है शिव जी उनपर अवश्य की अपनी कृपा रखते है |
लेकिन विष्णुपुराण मे शिव जी का जन्म विष्णु भगवान की नाभि से हुआ है | ये लिखा गया है |
भगवान शिव जी का विवाह –
भगवान शिव जी का विवाह माता पार्वती से हुआ था | ये कोई साधारण विवाह नही था |
देवो के देव महादेव ने सबसे पेहले सती से अपना विवाह किया था राजा दक्ष की पुत्री सती और शिव जी का विवाह के लिये दक्ष की मंजूरी नही थि | लेकिन ब्रम्हा जी के केहने पर दक्ष इस विवाह के लिये तैयार हो गये थे |
तब जाकर भगवान शिव और सती का विवाह संपन्न हुवा |इस विवाह मे सारे देवता गण उपस्थित थे | महादेव के वाहन नंदी पर बैठकर महादेव की बारात निकली थी | बताया जाता है की विवाह संपन्न होने के बाद भी दक्ष के मन मे शिव जी के बारेमे खेद था |
सती की अग्निकुंड मे आहुती –
भगवान शिव जी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती ने अग्निकुंड मे आहुती दीई थी | ये बात तो सबको मालूम है | लेकिन इसके पिछे की कहानी हम आपको बताएंगे |
आदि को लगता है की अग्निकुंड मे आहुती माता पार्वती ने डीई थी | मगर ऐसा नही है | जब दक्ष की पुत्री सती ने अग्निकुंड मे आहुती दि तब महादेव के चमत्कार से सती का जन्म हिमालय मे हुआ था और उसका नाम पार्वती था | पार्वती और महादेव का फिरसे विवाह हुआ था |
जब दक्ष के घर मे हवन होता है | सती के पिता महाराज दक्ष सभी देवो को हवन के लिये आमंत्रित करते है |
विष्णु भगवान, ब्रम्हा जी, देवो के देव इंद्रदेव, देवो के गुरु ब्रहस्पति, कामदेव आदि देवो की उपस्थिति महाराज दक्ष ने के हवन के लिये थी | मगर महाराज दक्ष अपने दामाद भगवान शिव जी को हवन के लिये आमंत्रित ही नही करते |
ये बात जब महाराज दक्ष की पुत्री मतलब भगवान शिव जी की पत्नी सती को पता चलती है ओ अत्यंत क्रोधित होकर अपने मायके चली जाती है |
अपने पति को हवन के लिये न बुलाया इस बात पर क्रोधित होके सती उसी हवन के अग्निकुंड मे अपने प्राणो की आहुती देती है |
शिव जी का मछवारे की पुत्री से विवाह –
एक दिन भगवान शिव जी अपनी पत्नी पार्वती को वेदो का महत्व बता रहे थे | लेकिन देवी पार्वती अपना मन एकाग्र हि नही कर पा रही थी | शिव जी जब महत्व बताते तब पार्वती का लक्ष विचलित होता था |
इस बात पर क्रोधित होकर शिव जी ने अपनी पत्नी पार्वती को श्राप दिया की तुम पृथ्वी पर मछवारे के घर जन्म लोगी |
ठीक ऐसा हि हो गया मछवारो की वस्ती मे एक वृक्ष के पास एक सुंदर कन्या प्रकट हुई | उस वृक्ष के पास से मछवारे गुजर रहे थे | तभी उनका ध्यान उस कन्या पर गया उन्होंने उस कन्या को अपने साथ लेकर अपने मुखीया के पास लाकर सारी हकीकत बताइ | उस मुखीया ने कन्या का पालन करने का फैसला लिया | लेकिन कैलाश पर्वत पर शिव जी पार्वती को लेकर चिंतित थे |
उनको पार्वती के बिगर चैन नही पढ रहा था | जैसे पार्वती बड़ी हुई | मछवारे ने उसकी शादी करने का निर्णय लिया | पार्वती दिखने मे सुंदर होने के कारण सभी यूवा उससे शादी करने के लिये तयार थे | ये बात शिव जी को पता चलती है तो शिव जी नंदी को बताते है | नंदी एक मछली का रूप धारण करके मछवारो के वस्ती के समुद्र मे चले जाते है | और मछली ने मछवारे को हैंराण कर दिया | मछली किसीके भी हाथ नही आ रही थी | आखिर मछवारो के मुखीया ने पण लिया जिसने इस मछली को पकडा मे उसका विवाह पार्वती के साथ करवाउंगा तब महादेव मछवारे के स्वरूप मे धरती पर आते है |
और उस मछली रूपी नंदी को पकड ते है | पण के अनुसार मछवारे पार्वती का विवाह भगवान शिव जी से होता है |