जितिया व्रत कथा: व्रत का महत्व, पौराणिक कथा और पूजन विधि

जितिया व्रत हिन्दू धर्म का एक प्रमुख और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत के महिलाएँ करती हैं। यह व्रत मुख्यतः संतान की लंबी आयु और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है। यह व्रत विशेषकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है और इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। जितिया व्रत का संबंध पौराणिक कथाओं से है जो संतान की रक्षा और उनके शुभ भविष्य की कामना के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है।

जितिया व्रत का महत्व

जितिया व्रत का धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। माताएँ अपने बच्चों की लंबी आयु और उनके कल्याण के लिए इस व्रत को करती हैं। यह व्रत न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का भी प्रतीक है। इस व्रत में महिलाएँ उपवास करती हैं और अपने संतान के लिए भगवान से आशीर्वाद मांगती हैं। हिंदू धर्म में इस व्रत को करने से बच्चों के जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य बना रहता है।

जितिया व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जितिया व्रत की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है। इसके अनुसार, महाराजा श्येन की कहानी प्रमुख रूप से जुड़ी हुई है। यह कथा इस प्रकार है:

एक बार की बात है, एक राजा श्येन के राज्य में जबरदस्त अकाल पड़ा। राजा ने अपने प्रजा की भलाई के लिए भगवान विष्णु की पूजा की और भगवान विष्णु ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। राजा श्येन ने इस आशीर्वाद को अपने प्रजा के बच्चों के दीर्घायु और सुखद जीवन के लिए उपयोग किया। इसके बाद से ही जितिया व्रत की परंपरा शुरू हुई।

इसके अलावा, एक अन्य कथा के अनुसार, गिद्धराज जिमूतवाहन ने अपने जीवन का बलिदान देकर नागवंश के पुत्रों की रक्षा की थी। उनकी इस अद्वितीय सेवा भावना के कारण उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसी की स्मृति में जितिया व्रत की परंपरा है, जिसे महिलाएँ अपने संतान के सुरक्षा और लंबी आयु के लिए करती हैं।

जितिया व्रत का पूजन विधि

जितिया व्रत की पूजा विधि अत्यंत ही सरल और शास्त्र सम्मत होती है। इस दिन व्रती महिलाएँ सूर्योदय से पहले स्नान करके पूजा की तैयारी करती हैं। पूजा के समय निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • लाल वस्त्र
  • मिट्टी या धातु से बनी जितिया की मूर्ति
  • पान, सुपारी, रोली, चावल
  • धूप, दीपक, अगरबत्ती
  • मिठाई और फल

व्रत का प्रारंभ

व्रत का प्रारंभ अष्टमी तिथि के सूर्योदय से पहले होता है। महिलाएँ इस दिन निर्जला व्रत करती हैं यानी पूरे दिन बिना पानी और भोजन ग्रहण किए व्रत रखती हैं। प्रातः काल स्नान के बाद वे जितिया माता की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान जितिया माता की मूर्ति की स्थापना की जाती है और धूप-दीप जलाकर माता की आरती की जाती है। इसके बाद वे संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।

जितिया व्रत कथा का श्रवण

पूजा के दौरान जितिया व्रत की कथा का श्रवण करना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। महिलाएँ एक साथ बैठकर पौराणिक कथा का वाचन करती हैं और कथा सुनने के बाद व्रत की महिमा को समझती हैं। यह कथा संतान की रक्षा और उनके मंगल भविष्य के लिए व्रती माताओं को प्रेरित करती है।

व्रत का समापन

अगले दिन व्रत का समापन अष्टमी तिथि की समाप्ति के बाद किया जाता है। इसके बाद महिलाएँ अन्न और जल का सेवन करती हैं। इस व्रत में निर्जला उपवास का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह संतान के प्रति मातृ प्रेम और बलिदान का प्रतीक माना जाता है।

जितिया व्रत के लाभ

जितिया व्रत करने से माताएँ अपने संतान के प्रति प्रेम, सेवा और समर्पण का परिचय देती हैं। इस व्रत के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  1. संतान की लंबी आयु: जितिया व्रत करने से संतान की आयु लंबी होती है और वे स्वस्थ रहते हैं।
  2. धार्मिक आस्था में वृद्धि: इस व्रत से महिलाओं की धार्मिक आस्था और श्रद्धा में वृद्धि होती है।
  3. मानसिक शांति: व्रत के दौरान पूजा-पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: जितिया व्रत से महिलाओं की आध्यात्मिक उन्नति होती है और वे जीवन के सत्य को समझती हैं।

जितिया व्रत एक अत्यंत पवित्र और धार्मिक अनुष्ठान है, जो संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएँ पूरे दिन निर्जल रहकर जितिया माता की पूजा करती हैं और पौराणिक कथा का श्रवण करती हैं। जितिया व्रत न सिर्फ संतान के कल्याण के लिए बल्कि माताओं की आत्मिक और मानसिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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