रुद्र संहिता शिवपुराण अध्याय चौथा | Rudra sanhita adhyay choutha.

 

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको शिवपुराण के रुद्र संहिता

का अध्याय चौथा के बारेमे जानकारी देने वाले है | रुद्र संहिता के बाकी के  अध्याय भी हमने पहले से वेबसाइट पर डाले हुये है | आप उन्हे ही जरूर पढ़ना |

 

 

 

सूत जी कहते हैं –

महर्षियों! माया मोहित नारद मुनि उन दोनों शिवगणो को यथोचित शाप देखकर भी भगवान शिव के इच्छावर मोह निंद्रा से जाग न सके। वह भगवान विष्णु के किए हुए कपट को याद करके मन में क्रोध लिए विष्णु लोक को गए और संविदा पाकर प्रचलित हुए अग्निदेव की भांति क्रोध से जलते हुए बोले (उनका ज्ञान नष्ट हो गया था इसीलिए वे दुर्वचन पूर्ण व्यंग सुनाने लगे)।

नारद जी ने कहा –

अरे तुम बड़े दुष्ट हो, कपटी हो और समस्त विश्व को मुंह में डाले रहते हो। दूसरों का उत्साह है या उत्कर्ष तुमसे सहा नहीं जाता, तुम मायावी हो तुम्हारा अंतःकरण मलिन है। पूर्व काल में तुम्हीं ने मोहिनी रूप धारण करके कपट किया। असुरों को वरूनी मदिरा पिलाई उन्हें अमृत नहीं पीने दिया। छल कपट में ही अनुराग रखने वाले हो। यदि महेश्वर रूद्र दया करके विष न लेते तो तुम्हारी सारी माया उसी दिन समाप्त हो जाती।

 

विष्णु देव कपट पूर्ण चाल तुम्हें अधिक प्रिय है। तुम्हारा स्वभाव अच्छा नहीं है तो भी भगवान शंकर ने तुम्हें स्वतंत्र बना दिया है। तुम्हारी इस चाल डाल को समझ कर अब वे भगवान शिव भी पश्चाताप करते होंगे। अपनी वाणी रूप वेद की प्रामाणिकता स्थापित करने वाले महादेव जी ने ब्राह्मण को सर्वोपरि बताया है। अरे इस बात को जानकर आज मैं बलपूर्वक तुम्हें ऐसी सीख दूंगा जिसे तुम फिर कभी कहीं भी ऐसा कर्म नहीं कर सकोगे। अब तक तुम्हें किसी शक्तिशाली या तेजस्वी पुरुष से पाला नहीं पड़ा था इसलिए आज तक तुम निडर बने हुए हो परंतु विष्णु अब तुम्हें अपनी करनी का पूरा पूरा फल मिलेगा।

भगवान विष्णु से ऐसा कहकर माया मोहित नारद मुनि अपने ब्रह्म तेज का प्रदर्शन करते हुए क्रोध से खिल उठे और शाप देते हुए बोले-तुमने स्त्री के लिए मुझे व्याकुल किया है इसी तरह सबको मोह में डालते रहते हो यह कपट पूर्ण कार्य करते हुए तुमने जिस स्वरूप से मुझे छल किया था उसी स्वरूप से तुम मनुष्य हो जाओ और स्त्री के वियोग का दुख मिले। तुमने जिन वानरों के समान मेरा मुंह बनाया, वही उस समय तुम्हारे सहायक हो। तुम दूसरों को स्त्री विरह का दुख देने वाले हो अतः स्वयं भी तुम्हें स्त्री के वियोग का दुख प्राप्त हो। अज्ञान से मोहित मनुष्यों के समान तुम्हारी स्थिति हो।

 

अज्ञान से मोहित हुए नारद जी ने मुख से श्रीहरि को जवाब दिया। तब उन्होंने शंभू की माया की प्रशंसा करते हुए उस शाप को स्वीकार कर लिया। तब महा लीला करने वाले शंभू ने अपनी उस विश्वमोहिनी माया को जिसके कारण ज्ञानी भी मोहित हो गए थे खींच लिया। माया के तिरोहित होते ही नारदजी पूर्ववत शुद्ध बुद्धि से युक्त हो गए। उन्हें पूर्ववत ज्ञान प्राप्त हो गया और उनकी सारी व्याकुलता जाती रही इससे उनके मन में बड़ा विष्मय हुआ। अधिकाधिक पश्चाताप करते हुए बारंबार अपनी निंदा करने लगे। उस समय उन्होंने ज्ञानी को भी मुंह में डालने वाली भगवान शंभू की माया की सराहना की तदअंतर यह जानकर कि माया के कारण ही मैं भ्रम में पड़ गया था यह सब कुछ मेरा माया जनित भ्रम ही था वैष्णव शिरोमणि नारद जी भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े। भगवान ने उठा कर खड़ा कर दिया उस समय अपने दुर्बुद्धि नष्ट हो जाने के कारण वे यू बोले- नाथ माया से मोहित होने के कारण मेरी बुद्धि बिगड़ गई थी इसलिए मैंने आप के प्रति बहुत दुर्वचन कहे हैं। आपको शाप तक दे डाला है। प्रभु मुझे आप माफ कर दीजिए। हाय मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। अब मैं निश्चय ही नरक में पढ़ूंगा। हरी! मैं आपका दास हूं बताइए मैं क्या उपाय, कौन सा प्रयास करूं जिससे मेरा पाप समूल नष्ट हो जाए और मुझे नरक में ना गिरना पड़े। ऐसा कहकर शुद्ध बुद्धि वाले मुनि शिरोमणि नारद जी पुण्य भक्ति भाव से भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े उस समय उन्हें बड़ा पश्चाताप हो रहा था। तब श्री विष्णु ने उन्हें उठाकर मधुर वाणी में कहा-

Rudra sanhita
Rudra sanhita

भगवान विष्णु बोले –

नाथ खेद न करो । तुम तो मेरे भक्त हो इसमें संशय नहीं है। मैं तुम्हें एक बात बताता हूं सुनो। उससे निश्चय ही तुम्हारा परम हित होगा। तुम्हें नरक में नहीं जाना पड़ेगा। भगवान शिव तुम्हारा कल्याण करेंगे। तुमने मद से मोहित होकर जो भगवान शिव की बात नहीं मानी थी, उसकी अवहेलना कर दी थी। उसी अपराध का भगवान शिव ने तुम्हें कैसा फल दिया है क्योंकि वही कर्मफल के दाता हैं। तुम अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लो कि भगवान शिव की इच्छा से यह सब कुछ हुआ है सबके स्वामी परमेश्वर शंकर ही गर्व को दूर करने वाले हैं। वहीं परब्रह्म परमात्मा है। उन्हें सच्चिदानंद रूप से बोध होता है। वे निर्गुण और निर्विकार हैं। सत, रज और तम इन तीनों गुणों से परे हैं। वही अपनी माया को लेकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीन रूपों में प्रकट होते हैं। निर्गुण और सगुण भी वही है। निर्गुण अवस्था में उनका नाम शिव है। वही परमात्मा, महेश्वर, परब्रह्मा, अविनाशी, अनंत और महादेव आदि नामों से कहे जाते हैं। उन्हें की सेवा से ब्रह्मा जी जगत की रचना किए हुए हैं। और मैं तीनों लोकों का पालन करता हूं। वे स्वयं ही रूद्र रूप से सदा सब का शिकार करते हैं। वह शिवस्वरूप से सब के साक्षी हैं। माया से भिन्न और निर्गुण हैं। स्वतंत्र होने के कारण भी अपनी इच्छा के अनुसार चलते हैं। उनका विहार, आचार, व्यवहार उत्तम है और भक्तों पर दया करने वाले हैं। नारद मुनि मैं तुम्हें एक सुंदर उपाय बताता हूं जो सुखद समस्त पापों का नाश और सदा भोग एवं मोक्ष को देने वाला है। तो मुझे सुनाओ व अपने सारे भक्तों को जाकर तुम भगवान शंकर के सुयश का गान करो और सदा अनन्य भाव से शिव के शतनाम स्त्रोत का पाठ करो। मुनि तुम निरंतर उन्हीं की उपासना और उन्हें का भजन करो उन्हें के यश को सुनो और गाओ।

तथा प्रतिदिन उनकी पूजा अर्चना करते रहो। नारद जो शरीर, मन और वाणी द्वारा भगवान शंकर की उपासना करता है उसे पंडित या ज्ञानी जानना चाहिए। वह जीवन मुक्त कहलाता है। शिव इस पाप रूपी दावानल से बड़े बड़े पातको के असंख्य पर्वत अनायास ही भस्म हो जाते हैं यह सत्य है, सत्य है। इसमें संशय नहीं है- जो भगवान शिव के नाम रूपी नौका का आश्रय लेते हैं, वे संसार सागर से पार हो जाते हैं। संसार की मूलभूत उनके सारे पाप निसंदेह नष्ट हो जाते हैं। महामुने! संसार की मूलभूत जो पातक रूपी वृक्ष है उनका शिव नाम रूपी कुठार से निश्चय ही नाश हो जाता है। पाप रूपी दावानल से पीड़ित है उन्हें शिव नाम रूपी अमृत का पान करना चाहिए। पाप दावागनी से दग्ध होने वाले प्राणियों को उस शिव नाम के बिना शांति नहीं मिल सकती। संपूर्ण वेदों का अवलोकन कर के पूर्ववर्ती विद्वानों ने यही निश्चय किया है कि भगवान शिव की पूजा ही उत्कृष्ट साधन तथा जन्म मरण रूपी संसार बंधन के नाश का उपाय है। आज से यत्न पूर्वक सावधान रहकर विधि विधान के साथ भक्ति भाव से नित्य निरंतर जगदंबा पार्वती सहित महेश्वर सदाशिव का भजन करो। नित्य शिव की कथा सुनो और कहो। तथा अत्यंत यत्न करके बारंबार शिव भक्तों का पूजन किया करो।

मुनी श्रेष्ठ अपने ह्रदय में भगवान शिव के उज्जवल चरणारविंदओं की स्थापना करके पहले शिव के तीर्थों में विचरों। मुनि! इस प्रकार परमात्मा शंकर मे अनुपम मन करते हुए अंत में आनंदवन (काशी) को जाओ। वह स्थान भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। वहां भक्ति पूर्वक विश्वनाथ जी का दर्शन पूजन करो। विशेषत उनकी स्तुति वंदना करके तुम निर्विकल्प संशय रहित हो जाओगे। नारदजी! इसके बाद तुम्हें मेरी आज्ञा से भक्ति पूर्वक अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए निश्चय ही ब्रह्मलोक में जाना चाहिए। वहां अपने पिता ब्रह्मा जी की विशेष रूप से स्तुति वंदना करके तुम्हें प्रसन्नता पूर्वक बारंबार शिव महिमा के विषय में प्रश्न करना चाहिए। ब्रह्मा जी शिव भक्तों में श्रेष्ठ हैं। वे तुम्हें बड़ी प्रसन्नता के साथ भगवान शंकर का महत्व और शतनाम स्त्रोत सुनाएंगे। आज से तुम शिव आराधना में तत्पर रहने वाले शिव भक्त हो जाओ और विशेष रूप से मोक्ष के भागी बनो। भगवान शिव तुम्हारा कल्याण करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु नारद मुनि को प्रेम पूर्वक उपदेश देकर श्री शिव का स्मरण वंदन और स्तवन करके वहां से अंतर्ध्यान हो गए

Share with

Leave a Comment