रामायण की सम्पुर्ण कहानी अयोध्याकाण्ड भाग 2 हिंदी मे |
नमस्कार दोस्तो कल हमने रामायण बालकाण्ड के बारेमे विशेष जानकारी आपको दि है | आज हम आपको रामायण का अगला भाग अयोध्या काण्ड के बारेमे बताएंगे | अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के चार पुत्र के विवाह संपन्न होने के बाद अयोध्या काण्ड शुरू होता है |
अयोध्याकाण्ड –
मिथिला नरेश महाराज जनक की चारो कन्याओं का विवाह अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के चारों पुत्रों से हो गया |
चारो भाई कौशल्या के पुत्र श्री राम, कैकई के पुत्र भरत, सुमेत्रा के पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघन अयोध्या मे रेहते थे | महाराज दशरथ अब बूढ़े हो चुके थे | उस दौरान उन्होंने अपने जेष्ट पुत्र राम का राज्याभिषेक करने का ठान लिया |
राजा दशरथ के बाद पुत्र राम अयोध्या पर राज करेंगे ये महाराज दशरथ की इच्छा थी |
प्रभु श्रीराम का वनवास –
मगर प्रभु श्रीराम अयोध्या के राजा बनेंगे तो विधिलिखित राम के हाथो होंने वाला रावण का वध कैसे होगा | ये सब देव – देवता सोचने लगे | और चिंतित हो गये |
बोहोत सोचने के बाद सभी देव – देवता अपनी समस्या का हल करने के लिये माता सरस्वती जी के पास गये | और माता सरस्वती को समस्या बतायी की माता विधिलिखित अत्याचारी रावण का वध विष्णु अवतार प्रभु श्रीराम के हाथो होंगा |
लेकिन प्रभु श्रीराम के पिता अयोध्या नरेश दशरथ ने प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक करने की ठान ली है | अगर राम राजा बन गये तो रावण का वध कैसे होगा |
सरस्वती ने समस्या का हल करने के लिये मंथरा की बुद्धि पर परिणाम कर दिया इसीकारण, मंथरा जो कैकई की दासी थी उसने कैकई के पास जाकर राम के खिलाफ कैकई को भडका देती है और अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने की सलाह देती है |
कैकई कोपभवन मे जाती है | अपनी दासी मंथरा ने बताइ गयी बातो के बारेमे सोचने लगती है | और पुत्र मोह मे कैकई राम को वनवास भेजने की सलाह राजा दशरथ को देती है |
दशरथ राजा ने एक दिन अपने पत्नी कैकई को उसकी एक इच्छा पूरी करने का वचन दिया था | और कैकई ने दशरथ जी से राम के वनवास की इच्छा व्यक्त करी |
और जिस श्रीराम जी को राजपाठ मिलने वाला था उस श्रीराम जी को वनवास मिला | और अपने पिता का शब्द का राम ने हस्ते हस्ते पालन किया | इसलिए उनको मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र बोलते है | राम जी अपने पिता दशरथ को प्रणाम करके और अपने माता कौशल्या का आशीर्वाद लेकर वनवास के लिये प्रस्थान कर रहे थे | उसी दौरान माता सीता ने प्रभु श्रीराम के साथ वनवास जाने का प्रण लिया | और राम जी के साथ भाई लक्ष्मण भी साथ वनवास जाने के लिये उत्सुक थे | राम, लक्ष्मण और माता सीता अयोध्या नगरी को नमन करके वनवास चले गये |और चित्रकुट मे रहने लगे |
महाराज दशरथ का निधन –
राम वनवास चले गये और इस चिंता मे प्रभु श्री राम के पिता दशरथ का निधन हो गया | जब महाराज दशरथ का निधन हुआ तब उनको अग्नि दहन करने के लिये चार पुत्र मेसे एक भी पुत्र उपस्थित नही था |
महाराज दशरथ के निधन के बाद अग्नि दहन के लिये पुत्रो कि अनउपस्थिति श्रवण बाल के माता – पिता ने दिया हुआ श्राप से हुई थी | जब श्रवण बाल ने अपने माता पिता को काशी ले जाने का सोच लिया | लेकिन उनके माता पिता अंध थे उन दोनों को भी दिखाई नही देता था | तो श्रवण बाल ने दो बडे कटोरे मे अपने माता और पिता को बिठाये और बड़ी काठी से बाँध दिया उनके बाद अपने कंधो पर काठी रखकर अपने माता पिता के साथ काशी के लिये प्रस्थान करना शुरू करा |
काशी जाते समय श्रवण बाल के माता पिता को प्यास लगी और उन्होंने श्रवण को जल लाने के लिये बोला | श्रवण अपने माता पिता को जल लाने के लिये नदी पर गया तभी महाराज दशरथ ने हिरण समझके श्रवण बाल पर बाण चला दिया उस बाण के वार से श्रवण बाल की मृत्यू हो गयी |
तभी महाराज दशरथ ने श्रवण बाल को देख लिया और ओ दुखी हो गये उन्होंने श्रवण बाल के माता पिता को बताया की अपने पुत्र श्रवण की मेरे बाण से मृत्यू हो गयी तब उन्होंने महाराज दशरथ को श्राप दिया की जब तुम्हारा निधन होगा तब तुमको अग्नि दहन करने के लिये तुम्हारा एक भी पुत्र उपस्थित नही रहेगा |
भरत ने राम के पादुका राज सिंहासन पर रखी –
महाराज दशरथ के निधन पत्शात उनके पुत्र भरत वापिस अयोध्या आये अपने भैया वनवास गये है | ये बात जैसे भरत को पता चलती है ओ बोहोत दुखी हो गये | और भरत राम जी को वापिस अयोध्या ले आने के लिये चित्रकुट गये मगर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र ने अयोध्या वापिस आने मे इनकार कर दिया मगर भरत ने राम जी की पादुका लेकर आये और उन पादुका को अयोध्या के राज सिंहासन पर रख दिया |
आज हमने रामायण अयोध्याकाण्ड के बारेमे बताया कल हम आपको अरण्यकाण्ड की जानकारी देंगे | अरण्यकाण्ड मे प्रभु श्रीराम के वनवास जीवन की कहानी बताइ गयी है |
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