शरद पूर्णिमा 2024 में 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी। यह पर्व भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसे विशेष रूप से लक्ष्मी पूजा और चंद्र दर्शन के लिए मनाया जाता है। इस दिन खीर का सेवन और चंद्रमा की रोशनी में जागरण करने से विशेष लाभ मिलता है। शरद पूर्णिमा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसका औषधीय और आध्यात्मिक महत्व भी अत्यधिक है।
शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाली पूर्णिमा है, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन माता लक्ष्मी और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए समर्पित होता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में अमृत का वास होता है, जो शरीर और मन को स्वास्थ्य और शांति प्रदान करता है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उदित होता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है।
शरद पूर्णिमा 2024 की तारीख
वर्ष 2024 में शरद पूर्णिमा का पर्व 17 अक्टूबर 2024, गुरुवार को मनाया जाएगा। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है।
शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त 2024
शरद पूर्णिमा की पूजा और चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है। इस दिन रात को चंद्रमा की किरणों का सेवन और लक्ष्मी पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। नीचे दिए गए शुभ मुहूर्त के अनुसार पूजा करनी चाहिए:
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 17 अक्टूबर 2024 को दोपहर 02:53 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 अक्टूबर 2024 को सुबह 04:25 बजे
- चंद्र दर्शन का समय: रात 10:00 बजे से 12:00 बजे तक (स्थानानुसार समय भिन्न हो सकता है)
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अद्वितीय औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। इस दिन को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:
- कोजागरी पूर्णिमा: यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी अपने भक्तों से पूछती हैं “को जागर्ति?” जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है?” जो भक्त रातभर जागकर पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में धन-संपत्ति का वास होता है।
- रास पूर्णिमा: इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों के साथ रासलीला करने के रूप में भी मनाया जाता है। यह दिन प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। वृंदावन और मथुरा में इस दिन विशेष रूप से रासलीला का आयोजन किया जाता है।
- औषधीय लाभ: धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी किरणों से अमृत वर्षा करता है। इस दिन खीर को रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखने का प्रचलन है, जिससे खीर में अमृततुल्य औषधीय गुण आ जाते हैं। इसे अगले दिन सेवन करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।
शरद पूर्णिमा की पूजन विधि
शरद पूर्णिमा की पूजा विशेष रूप से लक्ष्मी जी और चंद्र देवता की आराधना के लिए की जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए पूरी रात जागकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। नीचे दी गई विधि के अनुसार आप शरद पूर्णिमा की पूजा कर सकते हैं:
पूजन सामग्री:
- चावल, अक्षत, कुमकुम, हल्दी
- फूल, धूप, दीपक, अगरबत्ती
- खीर, मिठाई, फल
- पंचामृत
- चांदी या तांबे का सिक्का
पूजा की प्रक्रिया:
- सफाई: सबसे पहले पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें और गंगाजल से शुद्ध करें।
- मूर्ति स्थापना: माता लक्ष्मी और चंद्र देवता की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
- दीप प्रज्वलन: धूप, दीपक जलाएं और चंद्र देवता को जल अर्पित करें।
- मंत्रोच्चार: माता लक्ष्मी और चंद्र देवता की आराधना करते हुए निम्न मंत्रों का जाप करें:
- ॐ सोमाय नमः (चंद्र देवता के लिए)
- ॐ महालक्ष्म्यै नमः (माता लक्ष्मी के लिए)
- अर्घ्य: चंद्र देवता को अर्घ्य दें और खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखकर उसका सेवन करें।
- रात्रि जागरण: शरद पूर्णिमा की रात जागकर भजन-कीर्तन करें और माता लक्ष्मी की आरती करें।
शरद पूर्णिमा के विशेष उपाय
- खीर का सेवन: इस दिन रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखी गई खीर को अगली सुबह सेवन करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इससे स्वास्थ्य लाभ होता है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
- रात्रि जागरण: माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन रातभर जागकर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे घर में धन और समृद्धि की वृद्धि होती है।
- चंद्र दर्शन: शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे मन की शांति और मानसिक संतुलन प्राप्त होता है।
शरद पूर्णिमा के अन्य महत्व
- व्रत और उपवास: शरद पूर्णिमा के दिन कई भक्त उपवास रखते हैं और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत करते हैं।
- धार्मिक आयोजन: कई स्थानों पर इस दिन विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें रासलीला और कीर्तन का विशेष महत्व होता है।