शिव पुराण बिंदेश्वर संहिता पेज नंबर 18: एक विस्तृत विवेचना

 

शिव पुराण हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और पूजनीय ग्रंथों में से एक है। इसमें भगवान शिव की महिमा, उनकी कथाएं, लीला, और साधना के विभिन्न मार्गों का वर्णन किया गया है। शिव पुराण में कुल 24,000 श्लोक हैं और इसे सात खंडों में विभाजित किया गया है, जिसमें से एक प्रमुख खंड बिंदेश्वर संहिता है। यह संहिता शिव पुराण का एक अंश है, जिसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनके साधना पद्धतियों, और उनके पूजन विधियों का वर्णन किया गया है।

बिंदेश्वर संहिता में भगवान शिव के अलग-अलग रूपों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। इसमें भगवान शिव की महिमा, सृष्टि की उत्पत्ति, और उनके द्वारा स्थापित नियमों का विस्तार से वर्णन किया गया है। बिंदेश्वर संहिता का पेज नंबर 18 इस ग्रंथ के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत करता है।

बिंदेश्वर संहिता का परिचय

बिंदेश्वर संहिता शिव पुराण का एक विशेष खंड है, जिसमें भगवान शिव के तात्विक और रूपात्मक स्वरूपों का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह संहिता मुख्य रूप से भगवान शिव के प्रति भक्ति, ध्यान, और पूजा के महत्व को दर्शाती है। इसमें शिव जी की कृपा से मिलने वाली मोक्ष प्राप्ति, संसार के बंधनों से मुक्ति, और भक्तों के जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति की बात कही गई है।

पेज नंबर 18 में शिव जी के अलग-अलग स्वरूपों का उल्लेख मिलता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं और संघर्षों में मार्गदर्शन करने वाले हैं। इस पेज पर वर्णित सामग्री शिव साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शिव उपासना के महत्व और साधना की विधि को विस्तृत रूप से समझाती है।

पेज नंबर 18 की प्रमुख बातें

1. भगवान शिव का त्रिगुणात्मक स्वरूप

पेज नंबर 18 में भगवान शिव के सत्व, रज, और तम तीन गुणों के स्वरूप का वर्णन किया गया है। शिव जी इन तीनों गुणों से परे हैं, फिर भी संसार की रचना, पालन और संहार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

  • सत्व गुण: शिव के ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
  • रज गुण: उनकी सृजनात्मक और क्रियाशील शक्ति का प्रतीक है।
  • तम गुण: संहार और नकारात्मकता के नाश का प्रतीक है।

श्लोक:

“सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोऽस्तुते॥”

अर्थ: हे नारायणी! आप सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार की शक्ति स्वरूपा हैं। आप गुणों की आश्रयदाता और गुणों से युक्त हैं, आपको प्रणाम है।

2. शिव-शक्ति का संबंध

इस पृष्ठ में शिव और शक्ति के बीच के अद्वितीय संबंध का वर्णन मिलता है। शिव और शक्ति का यह संबंध संसार की उत्पत्ति, स्थिति, और संहार का आधार है। बिना शक्ति के शिव शून्य हैं, और बिना शिव के शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है। यह संबंध साधकों को आत्मिक ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होता है।

श्लोक:

“शिवायै शाश्वतायै च शक्त्यै सर्वेश्वराय ते।
नमस्ते शक्तिरूपायै शाश्वतायै नमो नमः॥”

अर्थ: हे सर्वेश्वर शिव और शक्ति! आप दोनों को नमन है। शिव के शाश्वत स्वरूप और शक्ति के रूप में आपके चरणों में बारंबार प्रणाम।

3. भक्ति और ज्ञान का महत्व

पेज 18 पर यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि शिव की आराधना से भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। साधक भक्ति और ज्ञान के मार्ग से भगवान शिव को प्रसन्न कर सकता है। भक्ति और ज्ञान दोनों मार्गों में शिव पूजा का विशेष महत्त्व बताया गया है।

श्लोक:

“नास्ति तत्त्वं न शिवाद् व्यतिरिक्तं
नास्ति ज्ञानं शिवमूलं समस्तम्।
येन ब्रह्माण्डमखिलं च तिष्ठेत्
तं शिवं सर्वगुणं नतोऽस्मि॥”

अर्थ: भगवान शिव के बिना कोई तत्व नहीं है, और शिव ही समस्त ज्ञान का मूल हैं। शिव जी ही वह शक्ति हैं, जिनसे समस्त ब्रह्मांड स्थित है। हम उस सर्वगुणसम्पन्न शिव को प्रणाम करते हैं।

4. मोक्ष प्राप्ति का मार्ग

शिव पुराण में मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की उपासना को सर्वोत्तम बताया गया है। पेज 18 पर इस बात का उल्लेख है कि जो भी साधक श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की पूजा करता है, उसे जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

श्लोक:

“मृत्युंजयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शंभवे।
अमृतेशाय सर्वज्ञाय त्र्यम्बकाय नमो नमः॥”

अर्थ: मृत्यु पर विजय पाने वाले, नीलकण्ठ रुद्र, शंभू, अमृतेश्वर, और सर्वज्ञ भगवान शिव को हमारा नमन है। उनकी आराधना से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

1. भगवान शिव के त्रिगुणात्मक स्वरूप

पेज 18 में भगवान शिव को त्रिगुणात्मक स्वरूप में वर्णित किया गया है। यह स्वरूप सत्व, रज, और तम—तीनों गुणों का समन्वय है। शिव जी इन तीनों गुणों से परे हैं, परंतु वे संसार की रचना, स्थिति, और संहार में इन तीनों गुणों का प्रयोग करते हैं।

  • सत्व गुण शिव जी के शांति और ज्ञान के रूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह गुण साधकों के जीवन में आध्यात्मिक शांति और संतुलन लाता है।
  • रज गुण भगवान शिव के सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है, जो कर्म और परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है।
  • तम गुण शिव के संहारक स्वरूप को दर्शाता है, जो संसार की नकारात्मकता और बुराइयों को नष्ट करता है।

2. शिव और शक्ति का संबंध

इस पेज पर भगवान शिव और शक्ति (पार्वती) के बीच के अद्वितीय संबंध का भी वर्णन किया गया है। शिव और शक्ति के बीच का यह संबंध सृष्टि की उत्पत्ति और उसे स्थिर बनाए रखने का मूल है। शिव बिना शक्ति के केवल शून्य हैं और शक्ति बिना शिव के अस्तित्वहीन है। यह विचार साधकों के लिए ध्यान और साधना में विशेष महत्त्व रखता है, क्योंकि शिव और शक्ति के संयुक्त रूप की आराधना से ही साधक को परमशक्ति की प्राप्ति होती है।

3. भक्ति और ज्ञान का मार्ग

पेज 18 में भक्ति और ज्ञान को समान रूप से महत्वपूर्ण बताया गया है। भक्ति मार्ग में शिव की आराधना और नित्य पूजा का विशेष महत्त्व है। भक्त अपने श्रद्धा भाव से शिव जी की पूजा करके उनके आशीर्वाद की प्राप्ति कर सकते हैं। दूसरी ओर, ज्ञान मार्ग साधकों को भगवान शिव के अद्वितीय ज्ञान और तत्व की ओर ले जाता है, जहां वे शिव के आध्यात्मिक रूप को समझ सकते हैं।

4. मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग

शिव पुराण का यह अंश स्पष्ट रूप से बताता है कि भगवान शिव की भक्ति और आराधना से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष वह अवस्था है, जहां आत्मा संसार के बंधनों से मुक्त होकर शिव के साथ एकरूप हो जाती है। पेज 18 पर यह बताया गया है कि शिव जी की कृपा से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकता है, बशर्ते वह अपनी साधना में दृढ़ और अडिग हो।

शिव पूजन की विधि और महत्व

शिव पुराण की बिंदेश्वर संहिता में शिव पूजन की विधि को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। पेज 18 पर यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि शिव जी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। शिव जी की पूजा में मुख्यतः निम्नलिखित चरण होते हैं:

  1. शिवलिंग की स्थापना: पूजा से पहले शिवलिंग की स्थापना की जाती है, जो शिव जी का प्रतीकात्मक रूप है।
  2. अभिषेक: शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। यह अभिषेक शिव जी को प्रसन्न करता है और साधक के जीवन में शुद्धता लाता है।
  3. पुष्प अर्पण: शिवलिंग पर सफेद फूल, विशेषकर बिल्वपत्र अर्पित किए जाते हैं, जो शिव जी को अत्यंत प्रिय होते हैं।
  4. धूप और दीप: शिव जी की आराधना धूप और दीप के माध्यम से की जाती है। धूप से वातावरण पवित्र होता है और दीपक प्रकाश का प्रतीक है।
  5. मंत्र जप: शिव जी के मंत्रों का जप पूजा के दौरान किया जाता है। इसमें “ॐ नमः शिवाय” प्रमुख मंत्र है।
  6. आरती: पूजा के अंत में शिव जी की आरती की जाती है, जो साधक के जीवन में प्रकाश और ऊर्जा का संचार करती है।

शिव मंत्रों का महत्त्व

शिव पुराण में शिव मंत्रों का भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। पेज 18 पर भगवान शिव के विभिन्न मंत्रों का वर्णन किया गया है, जो साधक को आंतरिक शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।

1. ॐ नमः शिवाय

यह शिव जी का सबसे पवित्र और प्रमुख मंत्र है। इसका नियमित जप साधक को मानसिक शांति, आत्मबल, और साहस प्रदान करता है। यह मंत्र भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।

2. महा मृत्युंजय मंत्र

“ॐ त्रयंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥”

इस मंत्र का जप साधक को मृत्यु और विपत्तियों से बचाता है। यह जीवन की रक्षा करता है और व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है।

शिव पुराण की बिंदेश्वर संहिता का पेज नंबर 18 साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें भगवान शिव के त्रिगुणात्मक स्वरूप, शिव-शक्ति के संबंध, भक्ति और ज्ञान के महत्व, और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का विस्तार से वर्णन मिलता है। इस पेज पर वर्णित सिद्धांतों और पूजा विधियों का अनुसरण करके साधक अपने जीवन को आध्यात्मिकता और शांति से परिपूर्ण कर सकते हैं। शिव जी की आराधना और मंत्र जप से जीवन की हर बाधा को दूर किया जा सकता है और मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

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