सोमवार व्रत कथा और विधि | somvaar vrat katha.

शुभ सोमवार, आजकी कथा मे हम आपको सोमवार व्रत की संपूर्ण विधि और कथा के बारेमे बताने वाले है | भक्तो सोमवार का व्रत शिव जी के लिए करते है | सच्चे मन से व्रत किया तो अवश्य ही शिव जी आपको प्रसन्न होंगे | तो भक्त गनो सोमवार व्रत को करने के लिये क्या क्या विधि है ये सबसे पहले हम देखेंगे | सबसे पहले हम जानेंगे सोमवार व्रत कोण कोण कर सकता है |

सोमवार व्रत कथा और विधि | somvaar vrat katha.
सोमवार व्रत कथा और विधि | somvaar vrat katha.

 

सोमवार व्रत पुरुष एवं महिला दोनों कर सकते है, आदि बच्चे भी सोमवार व्रत का पालन कर सकते है |

सोमवार व्रत विधि –

सोमवार व्रत करने के लिये आपको सुबह जल्दी उठकर, अपने गाँव या शहर के शिव मंदीर मे जाना है |

मंदीर मे जानेसे पहले स्नान करना अवश्य है, और महिलाओ को अपने बाल स्वस्छ करके ही मंदीर मे प्रवेश करना है |

मंदीर जाते समय सफेद फूल, बेलपत्र, भस्म और कलश ले जाना है | शिव जी के पिंड पर जल अर्पित करके भस्म लगाना है |

और बेलपत्र को जल से साफ करके अर्पित करना है |

उसके बाद शिव जी को नमस्कार करके घर लौट आना है | सोमवार व्रत मे आपको सोमवार के दिन फल के अलावा किसी का भी सेवन नही करना है |

 

सोमवार व्रत कथा –

छोटे से नगर मे एक साहूकार रेहता था | साहूकार बोहोत धनवान था और हर सोमवार के दिन सोमवार व्रत करता था |

शिव जी की नित्य पूजा करने पर उसको किसी भी चीज की कमी नही थी |

परंतु साहूकार को कोई भी संतान नही थी | इसी बात को लेके साहूकार चिंतित रेहता था |

एक दिन साहूकार संतान प्राप्ति के लिये बोहोत चिंतित था | तब पार्वती माता ने उसकी पुकार सुन ली | और शिव जी को बोली प्रभु ये साहूकार आपका सच्चा भक्त है |

आपकी हरदिन पूजा – अर्चना करता है | किंतु आपने उसे संतान प्राप्ति नही दी है | शिव जी पार्वती से बोलते है की इंसानो को जो कुछ मिलता है उनके भाग्य से और कर्मो से मिलता है |

साहूकार के भाग्य मे संतान नही है |

इस बात को लेकर पार्वती माता भी चिंतित हो जाती है | और शिव जी को पुनश्य संतान के लिये विनती करती है | पार्वती की बात पर शिव जी मान लेते है | और रात मे साहूकार के सपने मे शिव जी आते है |

और बताते है तुम्हे जल्द ही पुत्र प्राप्ति होगी मगर तुम्हारा पुत्र बारह साल की आयु तक ही जीवित रहेगा | बारह साल के बाद उसकी मृत्यु होगी |

सुबह होते ही साहूकार फिरसे चिंतित हो गया लेकिन साहूकार ने ये बात किसीको भी नही बताई कुछ दिन बीत जाने के पश्यात साहूकार की पत्नी गर्भवती रहती है |

और उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है | साहूकार की पत्नी खुश हो जाती है लेकिन साहूकार को सभी बात मालूम रेहती है |

धीरे धीरे दिन गुजरते गए साहूकार का बेटा ग्यारह साल का हो जाता है |

तो साहूकार की पत्नी उसका विवाह करने के लिए साहूकार को बोलती है | मगर साहूकार नाह बोलकर अपने पुत्र को अपने मामा के साथ काशी को शिक्षा प्राप्त करने के लिये भेजता है |

और साहूकार मामा भांजे को कहता है काशी जाते समय रास्ते मे यज्ञ करते और ब्राम्हनो को भोजन देके जाना | साहूकार उन्हें कुछ पैसे देता है |

दोनों मामा भांजे काशी की और निकलते है | काशी की और जाते समय उन्हें एक राजा मिलता है | ओ साहूकार के बेटे को कहता है | मेरे बेटे की शादी है मगर उस एक आख से दिखाई नही देता | क्या तुम मेरे बेटे की जगह मंडप मे फेरे लोगे क्या, मगर ये बात किसीको भी मत बताना ये बात राजा साहूकार के बेटे को केहता है | साहूकार का बेटा मान जाता है | और दूसरे राजा की बेटी से शादी करता है और सात फेरे लेता है |

साहूकार का बेटा दुल्हन के ओढ़नी पर लिख देता है की मे तुम्हारा पति नही हु, तुम्हारे पति को एक आख से दिखाई नही देता है | इसी कारण मुझे मंडप मे बैठाया गया है |

और इसके बाद साहूकार का बेटा अपने मामा के साथ काशी चला जाता है | और यज्ञ करता है |

बेटा बारह साल का हो जाता है और उसकी मौत होती है | अपना भांजा मृत देखकर मामा रोने लगता है |

अचानक वहा शिव जी प्रकट हो जाते है | और पार्वती माता के कहने पर उसे जीवन दान देते है |

साहूकार का बेटा पुनश्य जीवित हो जाता है | और जिस लड़की से उसने शादी करी थी उस लडकी के साथ अपने घर लौट जाता है |

सोमवार व्रत कथा पूरी हो गयी |

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