रामायण की कहानी, किष्किंधाकाण्ड भाग 4 | Ramayan ki kahani .

 

Ramayan ki kahani bhag 4 Kiskindhakand. रामायण की कहानी.

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रामायण की कहानी, किष्किंधाकाण्ड भाग 4 | Ramayan ki kahani .
रामायण की कहानी, किष्किंधाकाण्ड भाग 4 | Ramayan ki kahani .

 

रामायण भाग 3 अरण्यकाण्ड मे दशानन रावण ने माता सीता का हरण किया था | और माता सीता को बचाते समय पक्षी जटायू का देहांत हो गया था | अब अरण्यकाण्ड के बाद किष्किंधाकाण्ड मे प्रवेश करेंगे |

किष्किंधाकाण्ड – 

माता सीता का हरण हो जाने के बाद श्रीराम जी और लक्ष्मण अपने पर्णकुटी मे लौट आये लेकिन उन्हे माता सीता दिखाई न देने कारण श्रीराम और लक्ष्मण सीता को ढूंढने जाते है |

दोनों भाई माता सीता को देखते देखते परेशान हो जाते है लेकिन उनको माता सीता का पता हि नही चला |

 

हनुमान और प्रभु श्रीराम का मिलन – 

पवनपुत्र हनुमान किष्किंधा नरेश राजा सुग्रीव की वानर सेना मे मंत्री थे | सुग्रीव किष्किंधा के राजा थे लेकिन उनके भाई बाली ने किष्किंधा के राजा सुग्रीव और उनके पत्नी को जेल मे बंद किया था |

और सुग्रीव का राज्य छिनकर खुदको राजा बनाया था | लेकिन महाराज सुग्रीव की वानर सेना इस बात से नाराज थि | एक दिन ऋषिमुख पर्वत पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और महाबली हनुमान का मिलन हो गया |

हनुमान जी ने सम्पुर्ण वानर सेना के साथ श्री राम जी का आशीर्वाद लिया और उनको महाराज सुग्रीव के साथ उनके भाई बाली ने क्या किया ओ सब हनुमान ने श्रीराम जी को बताता और श्रीराम जी ने बाली से युद्ध करके उसका राज्य वापिस लेकर पुनश्य सुग्रीव को प्रधान किया और महाराज सुग्रीव फिर एकबार किष्किंधा के राजा बन गये |

महाराज सुग्रीव किष्किंधा नगरी के राजा बनाने के बाद श्रीराम जी को प्रण दिया की मे और मेरी सम्पुर्ण वानर सेना माता सीता को ढूंढने के लिये आपकी मदत करेगा |

 

माता सीता की खोज – 

महाराज सुग्रीव की वानर सेना माता सीता की खोज करने के लिये निकल गये | पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारो दिशाओ मे वानर सेना माता सीता का खोज करने के लिये निकल गयी

दक्षिण की और का नेतृत्व अंगद कर रहे थे |अंगद के साथ महाबली हनुमान दक्षिण दिशा की और निकल पडे थे | लेकिन उनको माता सीता का पता नही चला | ढूंढते – ढूंढते ओ वींघ पर्वत पहुंचे | वहापर सम्पति नामक पक्षी रहता था | ओ पक्षी वानर सेना के पास गया और उनसे पूछा की आप किसकी खोज के लिये पर्वत आये है |

इस बात पर हनुमान जी ने सम्पति को बताया की किसीने हमारे प्रभु श्रीराम की धर्मपत्नी माता सीता का हरण किया है और हम माता सीता की खोज के लिये ही पर्वत पहुंचे है |

तभी सम्पति ने उनको बताया की माता सीता का हरण लंका के राजा रावण ने किया है |

रावण ने जब माता सीता का हरण किया तभी उनको बचाने के लिये मेरे भाई जटायू ने रावण के साथ युद्ध किया था और उस दौरान मेरे भाई जटायू की मृत्यू हो गयी |

 

हनुमान जी की समुद्र यात्रा –

जटायू के भाई सम्पति ने वानर सेना को बताया था की माता सीता का हरण लंकापति रावण ने किया है | और उसका राज्य समुद्र के पार है |

वानर सेना सम्पति के पास से प्रभु श्रीराम के पास गये और उनको सम्पति ने बताया ओ बताया प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को सीता माता को मिलने का आदेश दिया |

तभी अपने गुरु प्रभु श्रीराम के आदेश का पालन करने के लिये लंका जाने के लिये तयार हो गये | जामवंत जी ने हनुमान को अपनी शक्ति का अहसास दिलाया और हनुमान को समुद्र पार जानेका एलान किया |

महाबली हनुमान ने समुद्र की और प्रस्थान किया और समुद्र पार करते समय ओ मेनका पर्वत पोहच गये | मेनका पर्वत ने महाबली हनुमान को विश्राम करने की अनुमती दी | लेकिन महाबली हनुमान ने मेनका पर्वत को बताया की मे मेरी गुरुमाता सीता की खोज के लिये लंका जा रहा हु तो मे विश्राम नही कर सकता |

मेनका पर्वत की आज्ञा से हनुमान मेनका पर्वत से लंका प्रस्थान किया | आगे जाते जाते देवो ने हनुमान की परीक्षा लेने का सोचा और सापो की माता सुरसा को हनुमान के रास्ते मे जाने का आदेश दिया | सापो की माता सुरसा हनुमान के रास्ते मे गयी और हनुमान जी ने सापो की माता सुरसा से युद्ध करके सुरसा के मुख मे जाकर मुख से बाहर आ गये और अपने रास्ते के लिये प्रस्थान किया |

और आगे समुद्र मे राक्षस से युद्ध करके हनुमान जी लंका पोहच गये लंका मे प्रवेश करने के बाद हनुमान जी एक छोटे से मक्खी जितना रूप लेकर लंका के महल मे प्रवेश किया | हनुमान जी ने लंका के चारो तरफ माता सीता को ढूंढने लगे लेकिन उनको माता सीता नजर नही आयी |

 

हनुमान और बीबिषण का मिलन – 

लंका मे माता सीता को ढूँढते समय हनुमान जी को एक महल दिखाई दिया वहापर एक व्यक्ति श्री राम का जप कर रहा था और आंगन मे तुलसी का रोप भी महल मे था |

तभी हनुमान जी मन ही मन सोचने लगे लंका मे कोण श्री राम का जप कर रहा होगा | तभी हनुमान जी एक ब्राम्हण का रूप लेकर उस महल की तरफ गये और उस व्यक्ति ओ आवाज लगाई | महल से एक व्यक्ति बाहर आ गयी और ब्राम्हण के रूप मे हनुमान जी ने उस व्यक्ति से अपना नाम पूछा |

ओ लंकापति रावण के भाई बीबीषण थे | बीबीषण श्रीराम के भक्त थे | और ओ हरदिन प्रभु श्रीराम का जप करते थे |

 

आज हमने रामायण का भाग 4 किष्किंधाकाण्ड के बारेमे आपको जानकारी प्रधान करी कल हम रामायण भाग 5 सुंदरकाण्ड के बारेमे आपको जानकारी देंगे |

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